स्कूल बेकार, पढ़े-लिखे बेरोजगार, यह है दिल्ली सरकार
स्कूल की बिल्डिंग स्कूल नहीं है। स्कूल का अर्थ तो स्कूल की पढ़ाई है, जो किसी स्कूल में नहीं हो रही।
By Rakesh Raman
दोस्तो, वैसे तो पिछले करीब 70 साल में हरेक राजनितिक दल ने भारतवासियों को लूटा है और भारत को कभी आगे नहीं बढ़ने दिया, लेकिन पिछले दो साल में हालत कुछ जयादा ही खराब हो गयी है।
अगर आप पूरे भारत के पिछड़ेपन के बारे में जानना चाहते हैं तो यहाँ पढ़ें, लेकिन इस आर्टिकल में हम सिर्फ भारत की और खास तौर से भारत की राजधानी दिल्ली की शिक्षा के बारे में बात करेंगे।
अब तक हम जान गये हैं कि अगर किसी देश का (या की) शिक्षा मंत्री खुद अनपढ़ हो तो उसे शिक्षा के स्तर को पूरी तरह से मिट्टी में मिलाने के लिये करीब दो साल लगते हैं।
और उसी देश के एक प्रदेश में यदि एक मुख्य मंत्री झूठा, धोखेबाज, और फरेबी हो तो वह तो शिक्षा का इतना सर्वनाश कर देगा कि आने वाली कई पीढ़ियाँ बरबाद हो जाएंगी – और हो रही हैं।
जी हाँ, आपने ठीक समझा। हम दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल की बात कर रहे। हम सब जानते हैं कि केजरीवाल ने मुख्य मंत्री बनने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे को धोखा दिया, हालाँकि केजरीवाल हज़ारे को अपना गुरु कहता था। फिर इसने अपने साथियों – योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण – को पार्टी से निकाल कर उनके साथ धोखा किया।
सबसे बढ़ा धोखा इसने दिल्ली के लोगों के साथ किया। दिल्ली के हालात बिगडते जा रहे है और केजरीवाल सिर्फ अपनी तारीफ में झूठे भाषण देता जा रहा है। आज दिल्ली दुनिया का सबसे ज्यादा प्रदूषित और शायद सबसे गंदा शहर है। जिस दिल्ली में टुरिज़म बढ़ाने की बात हो रही है, वहाँ हर जगह गली के कुत्ते गंद फैला रहे हैं।
चुनाव से पहले केजरीवाल दिल्ली के लोगों को पानी मुफ़त देने की बात करता था। लेकिन अब दिल्ली सरकार, दिल्ली जल बोर्ड और भृष्टाचारी हाउसिंग मैनेजमेंट कमेटियों के साथ मिल कर दिल्ली के लोगों को लूट रही है।
उदहारण के लिए जिस घर का पानी का बिल 50 रुपए आता था, वो अब महीने के 2,500 रुपए या इससे भी अधिक पैसे दे रहा है। जहाँ तक बिजली की बात है, बिजली तो आती जाती रहती है, लेकिन बिजली का बिल हमेशा टाइम पर आ जाता है जिससे सरकार जनता से पैसे बटोर सके।
दिल्ली की मुसीबत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि र.म.न. न्यूज़ सर्विस के एक ऑनलाइन सर्वे के मुताबिक सिर्फ 12% दिल्ली के लोग ही केजरीवाल की दिल्ली सरकार के काम से खुश हैं।
लेकिन हम इसका इतिहास यहाँ नहीं दोहराएंगे। जो लोग इसके बारे में और जानना चाहते हैं वे नीचे दिए गे लिंकस को कलिक करें और ध्यान से पढ़ें।
[ क्या अरविन्द केजरीवाल दिल्ली को बरबाद कर के रहेगा? ]
[ Is Arvind Kejriwal an Enemy of Delhi? ]
दिल्ली की शिक्षा मे धोखा
इस भूमिका के बाद, अब हम दिल्ली की शिक्षा की बात करेंगे। अपनी आदत के अनुसार जैसे दिल्ली के और क्षेत्रों में केजरीवाल बरबादी कर रहा है, वैसे ही शिक्षा का क्षेत्र भी इस के कहर से बचा नहीं है।
इस वक्त दिल्ली में करीब 5,800 स्कूल हैं जिनमे एक साल में करीब 45 लाख बच्चे दाखिल होते हैं। इनमे से अधिकतर बच्चे स्कूल में सिर्फ इस लिए आते हैं कि सरकार उन्हें स्कूल में खाना देती है और कई तरह से पैसे देती है। इस को आप एक तरह की सरकारी रिश्वत ही मानिये।
यह सब बच्चे और उनके माता–पिता टैक्स देने वालों के पैसों को यूं ही उड़ाते हैं जबकि या तो बच्चा स्कूल की पढ़ाई पूरी करे बिना स्कूल छोड़ देता है या पढ़ाई करने के बाद भी उसे कुछ नहीं आता और सड़कों पर धक्के खाता है। पढ़ाई का स्तर इतना घटिया है कि पढ़ाई के बाद भी स्टूडेंट अनपढ़ रहता है।
बहुत से ऐसे अनपढ़ युवक और युवतियां या तो नशीली दवाईयाँ लेना शुरू कर देते हैं या और बुरी आदतों का शिकार हो जाते हैं। इस वक़्त दिल्ली नशइयों से भरा हुआ है। यह ज़्यादातर वही लोग हैं जो स्कूल में अपना विश्वास खो देते हैं और स्कूल छोड़ देते हैं। बहुत से ऐसे नाबालिग बच्चे थोड़े से पैसे के लिए मज़दूरी करने लगते हैं। और कई पढ़ाई बीच में छोड़ कर हर तरह के अपराध – जैसे चोरी, लूट–खसोट, मार–पीट – करने लगते हैं।
कौन हे इसका जिम्मेवार? कौन कर रहा है इन बच्चों को बरबाद? कौन कर रहा है इन्हे नशीली दवाईयाँ लेने के लिए मजबूर? कौन धकेल रहा है इन्हे अपराध के रास्ते पर?
इन बच्चों के सबसे बड़े दुश्मन इनके माता–पिता हैं जो लाइन लगा कर कई बच्चे पैदा करते जा रहे हैं और फिर उन्हें ठोकरें खाने की लिए छोड़ देते हैं। इन्होंने कभी सरकार से या स्कूल वालों से पूरा स्वाल ही नहीं किया कि उनके बच्चों को ऐसी शिक्षा क्यों दी जा रही है जिसका उन्हें ना ज़िंदगी में ना कैरियर में कोई फायदा होगा। बस भेड़–बकरियों की तरह अपने बच्चों को स्कूल भेजते जा रहे हैं।
सरकार और स्कूल भी उतने ही जिम्मेवार हैं जो पढ़ाई का सही अर्थ नहीं समझते। वे यह नहीं समझते कि स्कूल की बिल्डिंग स्कूल नहीं है। स्कूल का अर्थ तो स्कूल की पढ़ाई है, जो किसी स्कूल में नहीं हो रही।
सबसे बड़ा धोखा स्कूल उस वक्त करते हैं जब वे स्टूडेंट्स को बिना परीक्षा के पास करके अगली क्लास में भेज देते हैं या टीचर उन्हें टेस्ट में खुलेआम नक्ल करने का मौका देते हैं। इसका नतीजा यह है कि जो स्टूडेंट दसवीं क्लास में है या दसवीं पास भी कर चुका उसे अभी तक दूसरी क्लास की पढ़ाई नहीं आती।
ना तो दसवीं क्लास और बड़ी क्लास का स्टूडेंट जमाँ और घटाओ के सवाल कर सकता है, ना उसे इंग्लिश का सेंटेंस लिखना आता है और बहुत का तो हिंदी भाषा में भी हाथ तंग है। दसवीं से पिछली क्लासों का क्या हाल होगा, इसका अंदाज़ा आप खुद लगा सकते हैं।
हैरानी इस बात की है की ऐसे नालायक स्टूडेंट्स को स्कूलों में लेम्मा और थ्योरम से भरा हुआ मैथ, मुश्किल विज्ञान और टेक्नोलॉजी जिसके लिए लैब तक की व्यवस्था नहीं, और इंग्लिश ग्रामर और लिटरेचर पढ़ाने की कोशिश की जा रही है।
बाकि विषयों का स्लेबस भी इतना बासी और पुराना है की उसमें से बदबू आती है। ऐसी पढ़ाई से कोई नौकरी नहीं मिल सकती। और ऐसी पढ़ाई करने के बाद स्टूडेंट अनपढ़ ही माना जायेगा।
क्या केजरीवाल या दिल्ली के शिक्षा मंत्री को इन सब बातों का पता नहीं? अगर नहीं, तो वे मंत्री बनने के काबिल नहीं। अगर उन्हें पता है तो उन्होंने इस बिगड़ती स्थिति को ठीक क्यों नहीं किया?
भृष्टाचारी टीचर
हालाँकि चुनाव से पहले केजरीवाल ने कहा था कि वह दिल्ली से भ्रष्टाचार खत्म कर देगा। लेकिन इसके मुख्य मंत्री बनने के बाद दिल्ली में भ्रष्टाचार और भी बढ़ गया है। और दिल्ली के स्कूल इस बढ़ते भ्रष्टाचार का केंद्र हैं।
टीचर स्कूल में सिर्फ इस लिए आते हैं की वे हर महीने अपनी सैलरी यानि तनख्वा ले सकें। स्टूडेंट्स की पढ़ाई से उन्हें कोई मतलब नहीं है। या तो वे झुण्ड बना कर स्कूल में गप्पें लगाते हैं या मोबाइल फ़ोन पर इधर उधर बातें करते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण पढ़ाई में उनकी अपनी कमजोरी है। अगर इन स्कूल टीचरों का टेस्ट उसी सब्जेक्ट में लिया जाये जो उन्हें पढ़ाना है तो वे खुद ही इस में फेल हो जायेंगे। क्या पढ़ाएंगे वे स्टूडेंट्स को?
शिक्षा का स्तर सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में एक जैसे ही बुरा है। सरकारी स्कूलों में टीचरों को किसी का डर नहीं, इसलिए वे पढ़ाते नहीं। महीने के बाद सैलरी तो उन्हें मिल ही जानी है।
प्राइवेट स्कूलों में जो भी करीब 5,000 या 6,000 रुपए प्रति माह पर काम करने के लिए तैयार हो जाता है वो टीचर बन जाता है। पढ़ाई के नाम पर उसे एक शब्द भी नहीं आता। सरकारी स्कूलों की तरह प्राइवेट स्कूलों में भी टीचरों का इतना बुरा हाल है कि वे पढ़ाने के काबिल नहीं हैं। हैरानी इस बात कि है कि माँ–बाप अपने बच्चों को स्कूल क्यों भेजते हैं।
इस के ऊपर प्राइवेट ट्यूशन एक ज़हर की तरह फैल रहा है। हालाँकि सरकारी रूल के मुताबिक प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाना मना है लेकिन कई टीचर या तो खुद ट्यूशन पढ़ाते हैं या बच्चों को ट्यूशन पढ़ने को कहते है। अगर स्टूडेंट्स ने ट्यूशन से पढ़ना है तो स्कूल टीचरों की क्या जरुरत है? यह भ्रष्टाचार नहीं तो और क्या है? क्यों नहीं केजरीवाल ऐसे भृष्टाचारी और निकम्मे टीचरों को नौकरी से निकालता?
पैसे लेकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना एक सामाजिक बुराई ही नहीं बल्कि एक पाप भी है। इस सामाजिक बुराई को फैलाने में सिर्फ ट्यूशन पढ़ाने वाले ही नहीं बल्कि वो माता–पिता भी शामिल हैं जो अपने बच्चों को प्राइवेट ट्यूशन में भेजते हैं।
इन ट्यूशन पढ़ाने वालों में एक बहुत बड़ा झुण्ड उन स्टूडेंट्स का है जो स्कूल के बाद कॉलेज में एडमिशन नहीं ले पाते और घर में बैठे रहते हैं। वे गरीब इलाकों में ट्यूशन के नाम पर माँ–बाप को लूट रहे हैं। माँ–बाप यह सोच नहीं पाते कि जो अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया, वह उनके बच्चों को क्या पढ़ाएगा।
आगे अँधेरा है
स्कूल और ट्यूशन में पढ़ने के बाद भी अधिकतर स्टूडेंट्स अनपढ़ के अनपढ़ ही रहते है। उन्हें किसी कॉलेज में दाखिला नहीं मिलता। आजकल कॉलेज में दाखिले के लिए स्कूल में करीब 90% मार्क्स चहिये।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के करीब 70 कालेजों की करीब 50,000 सीटों के लिए अपनी स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद करीब 4 लाख स्टूडेंट्स कोशिश करते हैं। कुछ तो कालेज में दाखिला ले लेते हैं और बाकी लाखों स्टूडेंट्स सड़कों पर धक्के खाते हैं या अपराध की दुनिया में शामिल हो जाते हैं।
लेकिन जो कालेज और यूनिवर्सिटी की पढ़ाई पूरी भी कर लेते हैं, उनके लिए भी नौकरी नहीं है और सिर्फ सड़क की ठोकरें हैं क्योंकि जो पढ़ाई आज के आधुनिक युग में नौकरी के लिए चाहिए वह स्टूडेंट्स ने की ही नहीं।
एक नये पियरसन सर्वे ने यह बताया है कि भारत के स्टूडेंट्स पढ़ाई खत्म करने के बाद भी किसी नौकरी करने के काबिल नहीं होते। सर्वे में 52% लोगों ने कहा है कि भारत की शिक्षा प्रणाली में इतनी कमियाँ हैं कि यह स्टूडेंट्स को नौकरी में रखने के लिए काफी नहीं है।
ऐसा ही संकेत भारत के ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (HDI) में मिलता है जहाँ भारत की शिक्षा का स्तर इतना ख़राब बताया गया है कि भारत का विशव में नंबर 130 है। यानि 129 देशों में शिक्षा का स्तर भारत से अच्छा है।
इसका मतलब भी यही है कि भारत में जिनके पास पढ़ाई की डिग्रियां भी हैं वे भी कोई नौकरी करने के काबिल नहीं हैं। बहुत से डिग्री वाले स्टूडेंट्स का हाल तो इतना ख़राब है कि उन्हें नौकरी के लिये प्रशिक्षण भी नहीं दिया जा सकता। ऐसे बेरोजगारों की संख्या भारत में बढ़ती जा रही है।
वैसे तो दिल्ली की तरह पूरे देश में बेरोजगारी एक खतरनाक बीमारी की तरह फैली हुई है, लेकिन उदहारण के लिए उत्तर प्रदेश का एक केस दिल को दहला देता है। यहाँ 368 चपरासी के पदों के लिए 23 लाख लोगों ने आवेदन दिया। इनमें हज़ारों लोगों के पास ग्रेजुएट, पोस्टग्रेजुएट, या पी.एच.डी. की डिग्रियाँ थी। इस चपरासी की नौकरी के लिए सिर्फ पाँचवी पास लोग चाहिए थे।
तो क्या दिल्ली सरकार की आँखें बंद हैं कि उसे यह तथ्य और आंकड़े नज़र ही नहीं आते? केजरीवाल कहता है वह नए सरकारी बज़ट में शिक्षा के ऊपर जय्दा खर्च कर रहा है। नए शिक्षा संस्थान खोल रहा है। तो क्या?
पढ़ लिख कर और डिग्रियाँ लेकर क्या करेंगे लोग? नौकरी कहाँ है? जो थोड़ी नौकरियाँ हैं, वे डिग्री देखे बिना रिश्वत देने वालों और जान–पहचान वालों को दे दी जाती हैं। यह सब लोगों को मुर्ख बनाना नहीं तो और क्या है?
केजरीवाल के राज में और दिल्ली सरकार में इस वक्त इतने नौसिखियें भरे पड़े हैं कि इन सब की डिग्रियों की कानूनी जाँच होनी चाहिए। यह सब मिलकर जनता का पैसा उड़ा रहे हैं और शिक्षा में सुधार के लिए कुछ भी नहीं कर रहे। करोड़ों रुपए खरच करके स्कूल की बिल्डिंगे बनाते जा रहे हैं जिनमे पढ़ाई एक पैसे की भी नहीं। क्या दिल्ली वालों को ऐसे स्कूलों की जरूरत है? नहीं, कभी नहीं।
By Rakesh Raman, who is the managing editor of RMN Company and runs free schools for poor children under his NGO – RMN Foundation.
Video courtesy: Ye Hai India, News24